लेखनी प्रतियोगिता -01-Jun-2022
“जन्नत-ए-आशियाँ”
चलो आशियाँ बनाए ऐसा कंही,
जंहा हम हो ओर कोई ग़म ना हो ।
तेरे हाथ में मेरा हाथ हो,
सारी जन्नतें मेरे साथ हो ।
सुनहरी धूप सी रोशनी हो ,
चमकते चेहरे का नूर सा हो ।
हो चारों तरफ़ बर्फ़ीली वादियाँ,
तेरे होंठो की मुस्कान सी हों ।
बिछीं हो घने कोहरे की चादर जंहा,
ओर तेरी बाँहों का हार सा हो ।
बिखरी हो चाँदनी की छँटा जंहा,
दोनो के बिछड़ने की आस ना हो ।
रिमझिम बारिश भी हो जब कभी,
लगे लफ़्ज़ों से प्यार बरसता हो ।
ओस की बूँदे पड़े जब पत्तों पर ,
चेहरे पर मोती की चमक सी हो ।
घर में जब आए हम अपने
चारों तरफ़ सिर्फ़ ख़ुशियाँ ही हो ।
ख़ूबसूरत जन्नत सी प्रकृति हो ,
हमारा ऐसा प्यारा आशियाना हो ।
रहे दोनों ऐसे जंहा में,
जंहा कोई पाबंदियाँ ना हो ।
Shrishti pandey
02-Jun-2022 05:25 PM
Nice
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Punam verma
02-Jun-2022 09:17 AM
Nice
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Abhinav ji
02-Jun-2022 08:32 AM
Nice👍
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